पटना: जमुई जिले के खैरा प्रखंड अंतर्गत लंगरीटांड़ गांव निवासी कैलाश मुर्मू का पुत्र सुनील मुर्मू वर्ष 2013 में बीएसएफ के 125 वीं बटालियन में अपना योगदान दिया था। शुरू से ही वह जम्मु कैडर में कार्यरत था। मंगलवार को उक्त जवान जम्मू कश्मीर के तंगधार नियंत्रण रेखा पर पाक की ओर से हुई गोलीबारी में शहीद हो गया। मंगलवार की शाम करीब सात बजे जम्मु बीएसएफ के हेडक्वार्टर से सुनील के शहीद होने की सूचना परिजनों को मिली। सूचना मिलते ही सुनील के घर में कोहराम मच गया।
सुनील के शहीद होने की सूचना मिलते ही परिजनों के चीत्कार से गांव का माहौल गमगीन हो गया। सीमा पर शहीद होने की सूचना पूरे गांव के अलावा जमुई में आग की तरह फैल गयी। जमुई के लाल सुनील के शहीद होने से जहां पूरे जिले के लोग गौरवांन्वित महसूस कर रहे हैं। वहीं जमुई के लाल के खोने का गम भी सता रहा है।

 

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जिला मुख्यालय से करीब 25 किलोमीटर की दूरी पर लंगरीटांड़ गांव है। मृतक के परिजन और गांव के लोग शहीद के पार्थिक शरीर के आने का इंतजार कर रहे हैं। अब तक जिला प्रशासन की ओर से इसकी कोई सूचना नहीं मिली है। बेटे खोने का गम पिता कैलाश मुर्म, माता रानी हांसदा को सता रहा है। वहीं पत्नी जुलिया की हालत देखी नहीं जा रही है। गांव के लोग बुधवार की सुबह से ही शहीद के घर पर पहुंचकर परिजनों को सांत्वना दे रहे हैं। आसपास गांव के लोग भी लंगरीटांड़ पहुंचकर परिजनों को ढ़ांढ़स बंधा रहे हैं।

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वर्ष 2012 में सुनील मुर्मू ने जुलिया के साथ लिया था सात फेरे

सुनील कुमार मुर्मू वर्ष 2006 में खैरा प्रखंड के बाराबांध हाईस्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास की थी। 2008 में वह जमुई के एकलव्य कॉलेज से इंटर किया था। शहीद सुनील दो भाई है। भाई में वह बड़ा था। छोटा भाई संदीप मुर्मू मैट्रिक पास कर घर पर ही रहता है। उसके भाई ने बताया कि वर्ष 2012 में नवादा जिले के गायघाट निवासी जुलिया हेम्ब्रम से सुनील भैया की शादी हुई थी। उसका कहना था कि शुरू से ही वह सेना में नौकरी करने के लिए गांव में ही दौड़ का अभ्यास करता था।

उसने बताया कि देश की सेवा करने की भावना बचपन से ही थी। वर्ष 2013 में वह बीएसएफ की नौकरी प्राप्त करने में सफल हो गया। बीएसएफ के125 वीं बटालियन में शामिल हो गया। उसका कहना था कि वह भी सेना में नौकरी करना चाहता है। उसक पिता के पास एक बीघा जमीन है। पिता घर पर ही रहकर खेतीबारी करते हैं। अभी तक खपरैल मकान में ही पूरा परिवार रहता है।

छोटे भाई भी देश सेवा के लिए सेना में जाने को है तैयार

शहीद के छोटा भाई संदीप का कहना है कि भाई के खोने का गम सता रहा है। लेकिन उसके शहीद होने के बाद उसका हौसला और बढ़ गया है। उसने बताया कि अगर उसे मौका मिला तो सेना की नौकरी प्राप्त कर दुश्मनों के दांत खट्टे करने में कोई कसर नहीं छोड़ेगा। वहीं शहीद के पिता कैलाश मुर्मू रोते हुए बताते हैं कि बेटे खोने का गम है लेकिन फिर भी वे विचलित नहीं हैं।

उनका कहना था कि उनका बेटा देश के लिए शहीद हुआ है। अगर दूसरे बेटे को भी सेना में जगह मिलती है तो वे खुशी-खुशी छोटे बेटे को भी सेना में जाने की इजाजत देंगे। उन्होंने कहा कि अब तक जिले का कोई भी पदाधिकारी नहीं आया है। शव के आने की सूचना भी अधिकारिक तौर पर नहीं मिली है।

मंगलवार की सुबह शहीद सुनील का आया था अंतिम फोन

शहीद का भाई संदीप ने बताया कि मंगलवार की सुबह भैया का फोन आया था। वह करीब 30 मिनट तक बातचीत किया था। पत्नी से भी 15 मिनट में बात हुई थी। उसने बताया कि मई माह में वह छुट्टी पर आने की बात कही थी। उसने बताया कि सुबह में बातचीत के दौरान वह खुश था।

किसे पता था कि शाम में मनहूस खबर आयेगी। उसने यह भी बताया कि वर्ष 2017 में दुर्गा पूजा की छुट्टी में गांव आया था। अक्टूबर के अंतिम सप्ताह में वह घर से जम्मू गया था। जो लौटकर फिर नहीं आया। रोते हुए उसके भाई ने बताया कि अब तो भैया के शव को ही देखकर संतोष करना पड़ेगा।

छोटे भाई के कंधे पर आ गया घर का बोझ

शहीद सुनील ही घर में कमाने वाला एक सदस्य था। अब उसकी मौत के बाद छोटे भाई संदीप के कंधे पर ही घर का बोझ आ गिरा है। पिता कैलाश का कहना है कि घर में अब कोई कमाने वाला नहीं है। सुनील के एक छोटे भाई के अलावा तीन बहन भी है। बड़ी बहन मुन्नी की शादी हो चुकी है। छोटी बहन तनूजा और निकिता की शादी अभी नहीं हुई है। वह हमेशा अपने दोनों छोटी बहनों के हाथ पीले करने का बात करता था।

ग्रामीणों ने बताया कि सुनील काफी सरल स्वभाव का था। जब भी गांव आता था सभी लोगों से मिलता था। बुजूर्गों को काफी सम्मान दिया करता था। ग्रामीणों ने बताया कि पूरे परिवार को वह अच्छे ढ़ंग से चला रहा था। उसकी मौत से पूरे गांव के लोग मर्माहत हैं। लेकिन गांव के लोगों का यह भी कहना था कि भले ही सुनील के खो जाने का गम है लेकिन उसने देश की रक्षा के लिए जो कुर्बानी दी है उससे न सिर्फ गांव के लोग गौरवांवित हैं बल्कि वह शहीद होकर पूरे जिले का नाम रौशन किया है।

शादी के बाद पति के साथ सात बसंत भी नहीं देख पायी जुलिया

पति के शहीद होने की सूचना पाकर जुलिया दहाड़ मारकर विलाप कर रही थी। उसके आखों के आंसू नहीं सुख रहे थे। उसका कहना था कि शादी के बाद पति के साथ सात बसंत भी नहीं देख पायी। उसने यह भी कहा कि कई बार उनसे आग्रह किया था कि होली में आप घर जरूर आयें। बार-बार विलाप करते हुए यह कह रही थी कि अब केकरा सहारे जिंदगिया कटते हो रजवा…, बबुअन के कै देखते हो बाबू, मुहवां न बिसरथे, मंगल के सुबह बतिया होले हल…… तरह-तरह की बातें कर जुलिया विलाप कर रही थी। उसकी हालत देखी नहीं जा रही थी।

दो बच्चों के पिता थे सुनील

शादी के बाद सुनील दो बच्चों के बाप बन गये थे। बड़ा बेटा आनंद पांच साल का है जबकि छोटा बेटा आदित्य राज तीन साल का है । पिता के खोने का गम बड़े बेटे के चेहरे पर स्पष्ट दिखायी पड़ रहा था। वहीं छोटा बेटा मां की आंखों में आंसू देखकर यह कह रहा था कि बाबू कब अइयहें। यह दृश्य देखकर गांव की महिलाओं और अन्य लोगों की आखें नम हो जा रही थी। जो लोग उसके घर पर आ रहे थे। परिजनों के विलाप को देखकर आंखों से आंसू छलक जा रहे थे। पूरे दिन मातम पूसी भी होती रही। पड़ोसी लगातार परिजनों को धैर्य बंधाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रखी थी।